बाटला हाउस विध्वंस मामले में हाई कोर्ट ने DDA से मांगा जवाब, अगली सुनवाई 10 जुलाई को

दिल्ली हाई कोर्ट ने बटला हाउस इलाके में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा जारी ध्वस्तीकरण नोटिस पर आंशिक राहत देते हुए अंतरिम रोक लगाने पर सहमति जताई है. यह राहत इस शर्त पर दी गई है कि याचिकाकर्ता पहले से सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका को वापस लेने का हलफनामा दाखिल करेंगे. DDA ने हाई कोर्ट में दलील दी कि इसी मामले में याचिकाकर्ता पहले ही सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं, और वहां की याचिका अभी लंबित है. प्राधिकरण ने सवाल उठाया कि ऐसी स्थिति में एक ही मामले पर दो अदालतों में सुनवाई कैसे हो सकती है.
DDA ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापसी के बिना हाईकोर्ट से किसी भी प्रकार की राहत या स्थगन (stay) देना न्यायसंगत नहीं होगा. इस मामले में 11 याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिनमें खसरा संख्या 279 के अंतर्गत आने वाली दो संपत्तियां भी शामिल थीं. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील फहद खान ने कोर्ट में कहा कि कोई लिखित नोटिस नहीं दिया गया, केवल मौखिक रूप से जानकारी दी गई. DDA ने 4 जून को जो सीमांकन किया, वह भी एकतरफा था.
शर्तों के साथ हाई कोर्ट ने दी राहत
4 जून के आदेश के अनुसार जो सीमांकन रिपोर्ट व कार्य योजना पेश की जानी थी, उसमें याचिकाकर्ता का क्षेत्र भी शामिल है, इसलिए यह मामला हाई कोर्ट में विचारणीय है. इसके बाद कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने का हलफनामा दाखिल नहीं करते, तब तक हाईकोर्ट उनके पक्ष में कोई स्थायी राहत नहीं दे सकता, लेकिन अंतरिम रूप से कोर्ट ने डीडीए के डिमोलिशन नोटिस पर अस्थायी रोक लगा दी है.
दिल्ली हाई कोर्ट से आंशिक राहत
अब अगली सुनवाई में यह देखा जाएगा कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस लेते हैं या नहीं. अगर ऐसा होता है, तो दिल्ली हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई आगे जारी रहेगी. कुल मिलाकर बटला हाउस निवासियों को दिल्ली हाई कोर्ट से आंशिक राहत तो मिली है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापसी की प्रक्रिया को पूरा करना अब उनके लिए अनिवार्य होगा.
DDA ने दिया था यह तर्क
DDA द्वारा बटला हाउस डिमोलिशन नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील फहद खान के मुताबिक कोर्ट में DDA का मुख्य तर्क यह था कि याचिकाकर्ता पहले ही सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं. इसलिए, कोई स्टे और राहत नहीं दी जा सकती, लेकिन याचिकाकर्ता को कोर्ट ने एक शर्त पर स्टे मिला कि सुप्रीम कोर्ट जाने वाले याचिकाकर्ता अपनी याचिका वापस ले लेंगे.