बिहार की सियासत के धुरी माने जाने वाले सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिम समुदाय का विश्वास भरोसा बनाए रखा था. नीतीश के चलते एक समय तक मुस्लिम समुदाय बीजेपी के पक्ष में भी वोट करते रहे हैं, लेकिन फिलहाल जेडीयू का मुस्लिम समीकरण गड़बड़ाया हुआ है. सूबे की सबसे अहम मिल्ली तंजीम इमारत-ए-शरिया भी अब नीतीश कुमार की पकड़ से पूरी तरह बाहर निकल गई है. वक्फ संशोधन बिल का जेडीयू के समर्थन करने के चलते ही इमारत-ए-शरिया सहित सात मुस्लिम संगठनों ने सीएम नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बायकॉट तक कर दिया, जो बिहार की चुनावी हलचल के बीच जेडीयू के लिए किसी झटके से कम नहीं है.

इमारत-ए-शरिया, AIMPB जमात-ए-इस्लाम और जमाते उलमाएं हिंद जैसे अहम मुस्लिम तंजीमों ने भले नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार से दूरी बनाए रखा, लेकिन बिहार के मितन घाट के सज्जादानशीं हजरत सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनअमी ने शिरकत कर नीतीश सरकार की लाज बचाने का काम किया. इसके अलावा बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जेडीयू से जुड़े हुए मुस्लिम नेता रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल हुए. नीतीश ने रोजा इफ्तार के बायकाट के प्लान को भले ही बेअसर कर दिया हो, लेकिन इमारत-ए-शरिया पर पकड़ कमजोर होने से जेडीयू का 2025 में सियासी गेम बिगड़ न जाए?

नीतीश की इफ्तार में कौन-कौन शामिल

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार का इमारत-ए-शरिया सहित सात मुस्लिम संगठनों ने बॉयकाट करते हुए कहा था कि रोजा इफ्तार पार्टी में कोई मुस्लिम भाई वहां नहीं जाएंगे. इसके बावजूद इफ्तार पार्टी में बिहार के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान के अलावा मुस्लिम समुदाय के कई बड़े दिग्गज नेता और सैकड़ों की संख्या में रोजेदार शामिल हुए. इफ्तार के पहले मितन घाट के सज्जादानशीं हजरत सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनअमी ने रोजे के महत्व पर प्रकाश डाला और सामूहिक दुआ की. बिहार के तरक्की, प्रगति, आपसी भाईचारे एवं मोहब्बत के लिए खुदा-ए-ताला से दुआएं की. नीतीश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो. जमा खान और जेडीयू एमएलसी खालिद अनवर इफ्तार की अगुवाई करते दिखे.

नीतीश की इफ्तार पार्टी में केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, एलजेपी से अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान,विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, मंत्री विजय कुमार चौधरी, श्रवण कुमार, अशोक चौधरी, महेश्वर हजारी, शिक्षा मंत्री सुनील कुमार, राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा, सांसद कौशलेंद्र कुमार सहित कई सांसद, विधायक, विधान पार्षद भी शामिल हुए.बीजेपी की तरफ से डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव के अलावा केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर भी शामिल हुए.

मुस्लिम तंजीमों में सिर्फ मितन घाट के सज्जादानशीं हजरत सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनअमी ने ही नीतीश कुमार के रोजा इफ्तार में शिरकत किए थे. इसके अलावा कोई दूसरी मुस्लिम तंजीम नहीं शामिल हुई. इनके अलावा जो भी मुस्लिम नजर आ रहे थे, वो जेडीयू से जुड़े हुए लोग थे. इससे पहले तक नीतीश कुमार के हर एक दावत में तमाम मुस्लिम संगठन से जुड़े नेता शिरकत करते रहे हैं, लेकिन पहली बार है कि जेडीयू की मुस्लिम समुदाय और मुस्लिम संगठनों पर पकड़ ढीली हुई है.

सीएम नीतीश से मुस्लिम संगठन नाराज

वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के रवैए से मुस्लिम संगठन नाराज है. मुस्लिम संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद (अरशद मदनी, महमूद मदनी), जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी जैसे अहम मुस्लिम संगठन ने नीतीश कुमार की दावत में शामिल नहीं हुए. इन संगठनों ने नीतीश कुमार से कहा है कि उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शासन और अल्पसंख्यकों के अधिकार की रक्षा के वादे पर सत्ता हासिल की थी लेकिन फिर ‘अतार्किक व असंवैधानिक’ वक्फ संशोधन बिल को उनकी पार्टी ने समर्थन दे दिया जो उन्हीं वादों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है.

जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने वक्फ बिल का लोकसभा में समर्थन करते हुए वक्फ बोर्डों को निरंकुश तक बताया था. उन्होंने दावा किया था कि इससे मुसलमान को कोई नुकसान नहीं होगा. इसके बाद जब मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उनसे मुलाकात की तब भी उनका रवैया बेहद रूखा था और उन्होंने इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के समर्थन का कोई वादा नहीं किया. यही नहीं प्रमुख मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार से भी इस बारे में मुलाकात की लेकिन उनकी बात का कोई फायदा नहीं हुआ. वक्फ संशोधन बिल के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में जब मुस्लिम समुदाय की सभी बातों को दरकिनार कर दिया तो एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने की कोशिश की गई लेकिन उन संगठनों के लोगों का कहना है कि उन्हें मिलने नहीं दिया गया.

मुस्लिम संगठनों की तरफ से नीतीश कुमार को लिखे गए पत्र में कहा कि आपकी इफ्तार की दावत का मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना होता है, लेकिन भरोसा केवल औपचारिक दावतों से नहीं बल्कि ठोस नीति और उपायों से होता है. आपकी सरकार का मुस्लिम समाज की जायज मांगों को नजरअंदाज करना, एक तरह की औपचारिक दावतों को निरर्थक बना देता है. इस तरह नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार में कोई भी अहम मुस्लिम संगठन शामिल नहीं हुए, जिसमें बिहार की इमारत-ए-शरिया और खानकाह रहमानी जैसे संगठन भी हैं.

नीतीश की पकड़ निकली इमारत-ए-शरिया

इमारत-ए-शरिया बिहार की सबसे बड़ी मुस्लिम तंजीम है, जिस तरह यूपी में जमियत उलेमाएं हिंद की पकड़ है, उसी तरह बिहार में इमारत-ए-शरिया का अपना सियासी आधार है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी के जरिए नीतीश कुमार ने इमारत-ए-शरिया पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में भी सफल रहे, जिसके जरिए मुस्लिम समुदाय का विश्वास भी हासिल करने में कामयाब रहे. इमारत ए शरिया फुलवारी शरीफ के मौलाना अनिसुर रहमान कासमी का भी भरोसा नीतीश कुमार जीतने में सफल रहे. मौलाना वली रहमानी के कहने पर नीतीश कुमार ने खालिद अनवर को एमएलसी बना दिया था और मौलाना गुलाम रसूल बलियावी को भी विधान परिषद भेजा था.

मौलाना वाली रहमानी, अनिसुर रहमान कासमी और मौलाना गुलाम रसूल बलियावी को साधकर नीतीश ने बिहार के मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ा था. 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज का अच्छा-खासा वोट जेडीयू को मिला था. 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी मुस्लिम वोट जेडीयू को बीजेपी के साथ रहने के बाद भी वोट दिया था, जिसके चलते ही आरजेडी का गेम बिगड़ गया था. 2015 के चुनाव में मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट जेडीयू के महागठबंधन के साथ होने का लाभ मिला था, 2017 में नीतीश के महागठबंधन से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ जाने से मुस्लिमों का जेडीयू से मोहभंग हुआ. वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के समर्थन करने से नीतीश कुमार की पकड़ से इमारत-ए-शरिया बाहर निकल गई है तो साथ ही खानकाह फुलवारी शरीफ सहित मुस्लिम तंजीमों पर भी पकड़ कमजोर हुए है.

JDU का गड़बड़ा ना जाए मुस्लिम वोट बैंक

इमारत-ए-शरिया पर नीतीश कुमार की पकड़ कमजोर होने का लाभ आरजेडी को मिलता दिख रहा है. तेजस्वी यादव ने पिछले दिनों इमारत-ए-शरिया के आफिस जाकर मौलाना वली रहमानी के बेटे से मुलाकात की थी. इसके बाद ही संकेत मिल गए थे कि इमारत ए शरिया पर आरजेडी की पकड़ मुस्लिम वोटों की गारंटी बन सकता है. नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार से जिस तरह मुस्लिम संगठनों ने किनारा किया है, उसके चलते साफ माना जा रहा है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में भी मुस्लिम तंजीमें जेडीयू के खिलाफ सख्त कदम उठा सकती हैं.

बिहार में करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो सियासी रूप से किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते है. बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या 243 है. इसमें से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. इस लिहाज से मुस्लिम वोटर काफी अहम माना जा रहे हैं.