बिहार वोटर लिस्ट विवाद: मनोज झा ने चुनाव आयोग पर उठाए 11 गंभीर सवाल

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर मामला गरमाता जा रहा है. विपक्षी दल इस प्रक्रिया के खिलाफ लगातार मुखर हैं. राज्य की मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा ने वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision, SIR) के निर्देश देने संबंधी चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने अपनी याचिका में 11 चीजों पर आयोग को घेरने की कोशिश की है.
मनोज झा के अलावा तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी आयोग के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है. एडवोकेट फौजिया शकील के जरिए कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में मनोज झा ने कहा कि चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन होने के कारण रद्द किया जाना चाहिए.
SIR से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनवाई करेगा. कोर्ट में सांसद महुआ मोइत्रा, एडीआर और योगेंद्र यादव तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी. इन 3 याचिकाओं के बाद दाखिल आरजेडी और अन्य की ओर से बुधवार तक दायर होने वाली याचिकाओं को भी गुरुवार सुना जाएगा.
क्या कह रहे हैं मनोज झा
राज्यसभा सांसद ने अपनी याचिका में कहा कि यह विवादित आदेश संस्थागत रूप से वोट डालने के अधिकार से वंचित करने का एक जरिया है और इसका इस्तेमाल वोटर लिस्ट के अपारदर्शी संशोधनों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है, और इसके लिए मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी समुदायों को टॉरगेट किया गया है.
आरजेडी सांसद मनोज झा का तर्क है कि विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया “न सिर्फ जल्दबाजी बल्कि गलत समय पर की गई है, इसका असर करोड़ों वोटर्स को मताधिकार से वंचित करने और उनके संवैधानिक मताधिकार से वंचित करने का है.” साथ ही इसके लिए राजनीतिक दलों से कोई विचार-विमर्श भी नहीं किया गया. साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग को बिहार विधानसभा चुनाव मौजूदा वोटर लिस्ट के आधार पर कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है.
ज्यादातर लोगों के पास नहीं ये 11 डाक्यूमेंट्स
वर्तमान एसआईआर प्रोसेस की शुरुआत के बाद, बहुत बड़े हिस्से (वर्तमान वोटर लिस्ट में 7.9 करोड़ में से करीब 4.74 करोड़) को जन्म तिथि और जन्म स्थान के प्रमाण की मदद से अपनी नागरिकता साबित करने का असंगत रूप से भारी बोझ उठाना पड़ रहा है. मनोज झा ने ऐसे राज्य में इस प्रक्रिया को शुरू करने की सोच पर सवाल उठाया, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और गरीबी से घिरे अशिक्षित लोग हैं, साथ ही विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में होने वाले हैं.
चुनाव आयोग की ओर से नागरिकता साबित करने के लिए तय किए गए 11 डाक्यूमेंट्स ऐसे नहीं हैं जो हर गरीब और अशिक्षित लोगों के पास हो सकते हैं. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि आयोग आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड या राशन कार्ड भी स्वीकार नहीं कर रहा है. याचिकाकर्ता ने कहा, “आधार कार्ड को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है, जबकि आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 10 में से 9 लोगों के पास आधार कार्ड मौजूद है, यह खुले तौर पर मनमाना है.” याचिका में कई अखबारों की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गांवों में ज्यादातर लोगों का कहना है कि उनके पास सिर्फ आधार कार्ड ही है.
चुनाव आयोग की ओर से तय 11 डाक्यूमेंट्स
- किसी भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पीएसयू के नियमित कर्मचारी और पेंशनभोगी को जारी किया गया कोई भी पहचान पत्र या पेंशन भुगतान आदेश. साल 2022 की जाति जनगणना के अनुसार, बिहार में महज 20.49 लाख लोगों के पास सरकारी नौकरी है
- 1 जुलाई 1987 से पहले भारत सरकार, लोकल अथॉरिटी, बैंक, डाकघर, एलआईसी या पीएसयू की ओर से जारी किया गया कोई भी पहचान पत्र या प्रमाण पत्र या कोई डाक्यूमेंट.
- सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया जन्म प्रमाण पत्र. जबकि पूरे बिहार में बहुत ही छोटी आबादी के पास ये डाक्यूमेंट हैं. यहां जन्म प्रमाण पत्र ज्यादा नहीं बनाए जाते. साल 2007 में जन्में बच्चे जो 2025 में 18 साल के हो जाएंगे और वोट देने के पात्र होंगे, महज 7.13 लाख बच्चों का जन्म रजिस्टर्ड कराया गया था.
- पासपोर्ट. बिहार की करीब 2.4% आबादी के पास ही पासपोर्ट है
- मान्यता प्राप्त बोर्ड या यूनिवर्सिटीज की ओर से जारी 10वीं या शैक्षिक प्रमाण पत्र. यह डाक्यूमेंट मुख्य पहचान प्रमाण है क्योंकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण बताते हैं कि 18-40 साल के करीब 45-50% लोग ही 10वीं पास हैं. बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के अनुसार, यहां पर 14.71% लोगों ने कक्षा 10 से स्नातक की डिग्री हासिल की है.
- सक्षम राज्य प्राधिकारी द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाण पत्र (Permanent Residence certificate). पात्र मतदाताओं की बहुत कम आबादी के पास यह प्रमाण पत्र है. आमतौर पर छात्र कॉलेजों में आवेदन के लिए इस प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं.
- वन अधिकार प्रमाण पत्र. 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का हिस्सा 1.3% है. उनमें से, जंगलों में रहने वालों की हिस्सेदारी बहुत कम है.
- ओबीसी, एससी एसटी या सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कोई भी जाति प्रमाण पत्र. भारत मानव विकास सर्वेक्षण 2011-12 के अनुसार, करीब 20% एससी, 18% ओबीसी और 38% एसटी के पास जाति प्रमाण पत्र था. खास बात यह है कि किसी भी उच्च जाति के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं होता है.
- राज्य या स्थानीय अधिकारियों की ओर से तैयार किया गया परिवार रजिस्टर. यह भी बिहार पर लागू नहीं होता है.
- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानी NRC, (जहां भी यह मौजूद है) यह केवल असम पर लागू है.
- सरकार की ओर से किसी भूमि या घर आवंटन पर जारी किया गया प्रमाण पत्र. भूमि आवंटन प्रमाण पत्र को लेकर कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. आवास आवंटन प्रमाण पत्र सरकारी आवास का लाभ उठाने वाले सरकारी कर्मचारियों पर लागू होते हैं. प्रधानमंत्री ग्राम आवास योजना जैसी योजनाओं के लाभार्थियों को ऐसा कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है.