गुजरात में 15 मई को पांच घंटे की कवायद और 15 विशेषज्ञों की निगरानी के बाद 1000 साल पुराने कंकाल को वडनगर पुरातत्व अनुभव संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया. इस संग्रहालय का उद्घाटन इस साल जनवरी में किया गया था. 1000 साल पुराने कंकाल को ‘समाधि वाले बाबाजी’ कहा जाता है.

इस कंकाल को मेहसाणा जिले से साल 2019 में खुदाई करके निकाला गया था. तब से इसे अस्थायी तंबू के अंदर रखा गया था. अब कंकाल को नया घर मिल गया है. वडनगर पुरातत्व अनुभव संग्रहालय के क्यूरेटर महिंदर सिंह सुरेला ने बताया- कंकाल को गुरुवार शाम 6 बजे के आसपास संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया है. इसे एहतियाती बैरिकेड के साथ रिसेप्शन क्षेत्र के पास ग्राउंड फ्लोर पर रखा गया है. वर्तमान में, यह प्रदर्शन के लिए नहीं है. जैसे ही निर्देश प्राप्त होंगे, संरक्षण के दृष्टिकोण से कंकाल की जांच के बाद, इसे संग्रहालय की गैलरी में स्थानांतरित करने की योजना बनाई जाएगी.

साल 2023 से ही कंकाल को वडनगर के पुराने शहर के बाहरी इलाके में सरकारी आवास के खुले मैदान में 12×15 फीट के तिरपाल और कपड़े के तंबू के अंदर रखा गया था. इससे पहले इसे आवास की सीढ़ियों के नीचे गलियारे में रखा गया था.

अधिकारियों ने बताया- कंकाल को टेंट से बाहर निकालने के लिए क्रेन का इस्तेमाल किया गया. खुदाई स्थलों पर काम करने वाले 15 से ज्यादा एएसआई और राज्य सरकार के अधिकारियों की देखरेख में इसे एक ट्रेलर में ले जाया गया. इस प्रक्रिया में पांच घंटे से ज्यादा का समय लगा. 2019 में रेलवे लाइन के पार अनाज गोदाम से सटी बंजर जमीन से कंकाल की खुदाई की गई थी.

समाधि की स्थिति में कंकाल दफनाया
इससे पहले गुजरात के पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशक पंकज शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था- लोथल के संग्रहालय में भी कंकाल रखने पर विचार किया जा रहा है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वडोदरा सर्कल के पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् अभिजीत आंबेकर, जो वडनगर उत्खनन से करीब से जुड़े थे, उन्होंने कहा था कि पिछले कई वर्षों में खोजी गई 9,000 से अधिक पुरावशेषों के साथ यह कंकाल गुजरात सरकार को सौंप दिया गया है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह कंकाल किसी ऐसे व्यक्ति का है जिसे बैठी हुई या ‘समाधि’ की स्थिति में दफनाया गया था, जो उस समय ‘गुजरात में सभी धर्मों में’ प्रचलित प्रथा थी.

पेपर में किया गया था इस कंकाल का जिक्र
हेरिटेज: जर्नल ऑफ मल्टीडिसिप्लिनरी स्टडीज इन आर्कियोलॉजी में प्रकाशित वडनगर: ए थ्राइविंग कम्पोजिट टाउन ऑफ हिस्टोरिकल टाइम्स शीर्षक वाले एक पेपर में आंबेकर और अन्य ने इस खोज का वर्णन कुछ इस प्रकार किया था- एक गड्ढे में क्रॉस-लेग्ड मुद्रा में बैठा हुआ एक अक्षुण्ण. अच्छी तरह से संरक्षित कंकाल. उत्तर की ओर मुख किए हुए सिर सीधा है, दाहिना हाथ गोद में रखा हुआ है. जबकि, बायां हाथ छाती के स्तर तक उठा हुआ है. संभवतः एक लकड़ी की छड़ी (डंडा) पर टिका हुआ है जो नष्ट हो चुका है. इस समाधि प्रकार के दफन की प्राचीनता संभवतः 9वीं-10वीं शताब्दी ईस्वी से शुरू की जा सकती है. संभवतः तब जब चौकोर स्मारक स्तूप का उपयोग नहीं किया जाता था.