शॉर्ट अटेंडेंस के नाम पर 10वीं-12वीं बोर्ड के 36 छात्रों को परीक्षा से वंचित करने का आदेश से मचा बवाल, अपनी ही सरकार के खिलाफ एबीवीपी ने की नारेबाजी
बिलासपुर । 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा से ठीक एक दिन पहले स्वामी आत्मानंद तिलकनगर स्कूल के 36 छात्रों को शॉर्ट अटेंडेंस के नाम पर परीक्षा से वंचित करने के आदेश से हडक़ंप मच गया। देर रात अचानक आए इस फरमान के खिलाफ छात्रों और उनके अभिभावकों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में जबरदस्त प्रदर्शन किया। विरोध इतना तेज हुआ कि एबीवीपी को अपनी ही सरकार के खिलाफ नारेबाजी करनी पड़ी! शनिवार से 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो रही हैं, लेकिन शुक्रवार रात 10.30 बजे छात्रों के मोबाइल पर एक मैसेज आया कि उनकी कम उपस्थिति के कारण उन्हें परीक्षा देने से रोका जा रहा है। इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ सुबह 10.30 बजे गुस्साए छात्र तिलकनगर आत्मानंद स्कूल पहुंचे, जहां एबीवीपी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने स्कूल प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। लेकिन स्कूल प्रबंधन ने हाथ खड़े कर दिए और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। उपमुख्यमंत्री के बंगले तक पहुंचा मामला, प्रशासन ने साधी चुप्पी छात्रों और एबीवीपी के नेताओं ने सीधे उपमुख्यमंत्री अरुण साव के बंगले का रुख किया और उनसे न्याय की गुहार लगाई। उपमुख्यमंत्री ने तत्काल कलेक्टर से चर्चा कर छात्रों को कलेक्ट्रेट भेजा। इसके बाद छात्रों और अभिभावकों ने कलेक्ट्रेट के बाहर भारी विरोध प्रदर्शन किया। नाराज छात्रों ने प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, जिसके बाद कलेक्टर को अपने अधिकारियों को बातचीत के लिए भेजना पड़ा। अफसरों से तीखी बहस बैकफुट पर आया प्रशासन चर्चा के दौरान जब प्रशासन ने छात्रों को प्राइवेट परीक्षा देने की सलाह दी, तो एबीवीपी के कार्यकर्ताओं और छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा। छात्रों ने सवाल उठाया कि अगर एडमिट कार्ड पहले ही जारी कर दिया गया था और पूरे साल पढ़ाई की गई थी, तो फिर प्राइवेट परीक्षा क्यों दी जाए? तेज बहस और बढ़ते विरोध को देखते हुए अतिरिक्त कलेक्टर शिव कुमार बेनर्जी को छात्रों को नियमित परीक्षा में शामिल करने का आश्वासन देना पड़ा। इसके बाद ही छात्र शांत हुए। यह पूरा मामला प्रशासन की लापरवाही और तानाशाही रवैये को उजागर करता है। बोर्ड परीक्षा से ठीक एक दिन पहले छात्रों को बाहर करने का फरमान देना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह उनके भविष्य से खिलवाड़ करने जैसा है। अगर एबीवीपी और छात्रों ने मोर्चा नहीं खोला होता, तो शायद ये 36 छात्र परीक्षा से वंचित रह जाते। प्रशासन की इस लापरवाही पर क्या कोई कार्रवाई होगी? या फिर हर बार छात्रों को ही संघर्ष करना पड़ेगा?