बारा नरसंहार मामला: 15 साल बाद मुख्य आरोपी किरानी यादव की गिरफ्तारी, 13 अभियुक्तों को सजा
गया: बिहार में 1990 की दशक में कई नरसंहार हुए. उस दौरान सिर्फ एक नहीं बल्कि नरसंहार ने पूरी देश दुनिया का ध्यान बिहार की तरफ केंद्रित कर दिया. ऐसे में राज्य की कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठे. इन्हीं नरसंहार में गया जिले के टिकारी ब्लॉक में स्थित बारा गांव का बारा नरसंहार भी था. गया में 31 साल पहले हुए इस नरसंहार को याद करके आज भी गांव के लोग सहम जाते हैं. 12-13 फरवरी की रात 1992 को हुए इस नरसंहार की खबर से हर कोई एकदम सन्न रह गया था. आधिकारिक आँकड़ों की मानें तो इस नरसंहार में भूमिहार जाति के 40 लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी. बारा नरसंहार, एक ऐसा नरसंहार था जिसे याद करके आज भी गुजरा हुआ अतीत सहम जाता है, थम जाता है, सिहर जाता है. इस नरसंहार में काल भी रो पडा था. निर्ममता इस कदर कि आधुनिक काल में शायद ही ऐसा नरसंहार कहीं और देखने को मिले.
जब बम और गोलियों से थर्रा गया था गांव
क्राइम की खबरों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं. 12 फरवरी 1992 की वह काली रात थी, जब सैंकडों की संख्या में रात में 9 बजे के करीब भाकपा माओवादी के नक्सलियों ने बारा गांव को घेर लिया. पूरा गांव गोलियां और बम के धमाकों से दहल उठा था. नक्सलियों ने एक साथ इस गांव में हमला किया. पूरी योजना बनाकर के इस हमले को अंजाम दिया गया था. इस दौरान नक्सलियों ने चुन-चुन के भूमिहार जाति के लोगों को इकट्ठा किया और फिर उनके हाथ पैर बांधकर गांव के बाहर, बधार पर लेकर के चले गए. करीब चार घंटे तक नक्सलियों ने इस गांव में अपना कोहराम मचाया था.
रात डेढ बजे तक मौत का तांडव
पत्रकार ने बताया कि नक्सलियों की दहशत का आलम यह था कि उन्होंने इस खौफनाक वारदात को अंजाम देते हुए जरा सा भी रहम नहीं किया. रात 9 बजे जिन नक्सलियों ने गांव में पश्चिम की तरफ से प्रवेश किया था, उन्होंने करीब 1:30 बजे रात तक पूरे गांव में कोहराम मचा दिया. इस दौरान उन्होंने 40 लोगों का निर्मम तरीके से गला रेत दिया था. इनमें से 32 लोगों की मौत तो मौके पर ही हो गई, जबकि दो लोगों ने इलाज के क्रम में मेडिकल कॉलेज में तथा एक ने हमले के 22 दिनों के बाद पीएमसीएच में अपना दम तोड़ दिया. घायलों में लखन सिंह, गोपाल सिंह, योगेंद्र सिंह, धनंजय सिंह, वीरेंद्र सिंह समेत कई घायलों की जान बच गई थी. प्रशासन का आलम यह कि नक्सलियों के जाने के बाद उसे रेंज के डीआईजी, एसपी, थाना प्रभारी गांव में पहुंचे थे.
टाडा कोर्ट में सुनवाई
बारा नरसंहार मामले की सुनवाई टाडा कोर्ट में हुई थी. जून 2001 में 13 अभियुक्त को सजा सुनाई गई, जिसमें किरानी यादव को मुख्य आरोपी बनाया गया. करीब एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक विशेष अदालत में इसका ट्रायल चला. इस दौरान करीब आधा दर्जन से अधिक गवाहों ने किरानी यादव की पहचान की थी. बारा नरसंहार के सूचक सत्येंद्र शर्मा थे. इस नरसंहार में 34 लोगों पर नामजद और सैकड़ों नक्सलियों पर अज्ञात के रूप में मामला दर्ज कराया गया था. बताया जाता है कि 12 फरवरी 1992 को भाकपा माओवादी नक्सली संगठन ने इस घटना को अंजाम दिया था. जिला व सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की अदालत ने बारा नरसंहार के मुख्य आरोपी की किरानी यादव उर्फ सूर्यदेव यादव उर्फ रामचंद्र यादव को सजा सुनाई थी. किरानी यादव को आजीवन कारावास की सजा हुई थी. साथ ही साथ पांच लाख रुपये का दंड भी लगाया गया था. इसके अलावा 13 अन्य अभियुक्त को भी सजा हुई थी.
उम्रकैद में बदली थी सजा
अभियुक्त में नन्हे लाल, कृष्ण मोची, वीर कुंवर पासवान और धर्मेंद्र सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति ने चारों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. 2009 में नरेश पासवान और युगल मोची को फांसी की सजा हुई थी, जबकि साक्ष्य के अभाव में तीन आरोपियों को बरी भी किया गया था. खास बात यह कि घटना के 15 साल गुजरने के बाद किरानी यादव को गिरफ्तार किया गया था. इस गांव में आज भी नरसंहार की याद में एक स्मारक है. स्मारक में एक शिलापट्ट भी है, जिनमें उन सभी लोगों के नाम हैं, जिनकी हत्या कर दी गयी थी. इस निर्मम नरसंहार की गूंज पूरे देश में हुई थी, जिसने भी सुना था, वह बिल्कुल सकते में रह गया था.